संपूर्ण रामायण

 

 

रामायण प्राचीन भारत का एक अतिलोकप्रिय महाकाव्य हैं। रामायण का मतलब है अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम की सम्पूर्ण जीवनगाथा। रामायण की मूल रचना महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में की थी, बाद में तुलसीदास ने इन छन्दों की रचना हिन्दी में रामचरितमानस के रूप में की। रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चारित्रिक गुणों और बुराई पर अच्छाई की जीत की विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी है। रामायण में लिखे गये मानवीय मूल्यों को पढ़कर भारतवासी इसे श्रद्धा और आदर की दृष्टि से देखते हैं। 

महर्षि वाल्मीकि ऋषि-द्रष्टा थे। वस्तुओं के भाव, धर्म तथा तत्व का सुविज्ञ जन ही ऋषि पद से वन्दनीय होता है। आदिकवि ने किसी प्राचीन काव्य का दर्शन, श्रवण तथा अवलम्बन किये बिना ही सर्वोत्कृष्ट काव्य का निर्माण किया। वे कविहृदय थे। कवि का अर्थ होता है- नेत्रों के व्यापार से दूर रहने वाला अतीत एवं अनागत पदार्थों को यथार्थ रूप से देखने वाला दिव्य पुरुष। यही कारण है कि ऐतिहासिक काल के अरूणोदय में रचे जाने पर भी यह ग्रंथ अनुपम और अद्वितीय है।  

लौकिक संस्कृत में श्लोक रचना का सर्वप्रथम श्रेय वाल्मीकि जी को ही प्राप्त है। यह ग्रंथ प्राचीन काल से ही भारतीय साहित्य कोष को आलोकित करता आ रहा है।


यह हिंदु धर्म का सबसे पवित्र धर्म ग्रन्थ माना जाता है। भारत के अधिकांश मंदिरों में सुबह और शाम रामायण की चौपाइयां बड़े ही भक्ति भाव से गायी जाती है।

Ramayan की प्रसिद्धी का पता इस बात से चलता है कि पूरे भारतवर्ष में रामलीला का मंचन साल में विभिन्न अवसरों पर अलग-अलग रूपों में किया जाता है। रामलीला का भव्य मंचन भारत के अलावा विदेशों में भी किया जाता है। प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू बड़े रोचक अंदाज में राम कथा के दृष्टांतों का वर्णन करते है जिसे दुनिया भर के करोड़ों लोग प्रतिदिन श्रद्धा और भक्तिभाव के साथ देखते हैं।

रामायण धारावाहिक का प्रसारण टीवी पर दिखाया गया जिसे भक्तों ने बड़े भक्तिभाव के साथ देखा। जो भक्त मंदिर या घर में रामायण का नियमित रूप से पाठ या श्रवण करते हैं उनके घरों में शान्ति और खुशहाली सदैव विराजमान रहती है।

वाल्मीकीय रामायण की अनेक प्रकार की पारायण विधियाँ हैं। श्रीरामसेवाग्रन्थ, अनुष्ठानप्रकाश, स्कान्दोक्त रामायण-माहात्म्य, बृहद्धर्मपुराण तथा शाड्डर, रामानुज, मध्य, रामानन्द आदि विभिन्न सम्प्रदायों की अलग-अलग विधियाँ हैं, यद्यपि उनका अन्तर साधारण है। इसी प्रकार इसके सकाम और निष्काम अनुष्ठानों के भी भेद हैं।

टिप्पणियाँ