तीस साल बाद शहर से अपने घर आया हूं।
बच्चे बहू पत्नी सब पास के बाजार के होटल में टिके हैं।
कल मेरे साथ, मेरे इस पुस्तैनी मकान में आए थे।
बस, पोते ने कंडाली, छुई और चीख पड़ा, मैंने उसे ढ़ाढस बंधाने के लिए अपने हाथ से कंडाली को मसला, मुझे भी लगी पर मैं मुस्कराते रहा, मेरी बचपन की मीठी यादें कंडाली की जलन पर हावी थी।
वापस होटल लौटे तो पोते के कंडाली से फफोले उठ आए थे, डाक्टर बुलाया गया।
मेरे अलावा सब मेरे उस घर को गालियां दे रहे थे, जिसमें अब कंडाली उग आई थी।
मैं फिर आज अकेले आया हूं, अपने घर से शायद अंतिम बार मिलने,
मेरी मां की लोरी, पिता की मीठी डांट, हम आधे दर्जन भाई बहिनों की मस्ती।
हींसर, काफल का स्वाद, सब कुछ जैसे वर्षों बाद वापस लौट आया।
मैं वापस लौटने लगा तो उस जीर्ण-शीर्ण घर ने रोते हुए मुझे आवाज दी, अब फिर कब आओगे?
मैंने मुड़कर देखा, तो उस बंजर घर को रोते देखा, मैं बोला मेरे घरवालों ने तुझे भुतहा घोषित कर दिया है, उन्हें तू और तेरी कंडाली बिल्कुल पसंद नहीं आई।
पर मैं जरूर लौटूंगा, मरने के बाद, तब आपके साथ फुर्सत से बातें करूंगा, कंडाली की सब्जी खाएंगे!
घर, फिर बोला, शायद तब मैं नहीं मिलूंगा, मेरे जैसे कई घर, शहर के लाला खरीद चुके हैं, सुना है उनकी जगह रिसोर्ट बनेंगे, शराब खाने खुलेंगे और न जाने और क्या-क्या....!
मैं यह सुनकर, परेशान हो उठा, अब मैं वापस अपने परिवार के साथ शहर लौट आया हूं।
पर मुझे लगा मेरी, आत्मा उसी खंडहर में छूट आई है और शहर सिर्फ मेरी लाश लौट आई है.... मैं रात को अपने उस घर से नींद में खूब बातें करता हूं पर मेरे घरवाले कहते हैं, आप रात-भर बड़बड़ाते हो, हमें सोने भी नहीं देते, फिर मेरा शहरी बेटा मुझे ब्यंगात्मक ढंग से ढांढ़स बंधाते हुए कहता है, इसमें आपकी कोई गलती नहीं है, आखिर इस उम्र में आदमी सठिया ही जाता है....
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