*🔷 तिलक लगाने का अर्थ और आज्ञा चक्र से उसका संबंध 🔷*
हमारे सनातन धर्म में तिलक लगाना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि गहरी आध्यात्मिक चेतना और वैज्ञानिक सोच का प्रतीक है। माथे के बीचोंबीच, दोनों भौंहों के बीच का स्थान — जिसे *भ्रूमध्य* कहा जाता है — वहां तिलक लगाया जाता है। यही स्थान 'आज्ञा चक्र' कहलाता है।
आज्ञा चक्र शरीर के सात प्रमुख ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) में से छठा चक्र है। इसे *तीसरी आंख* भी कहते हैं। यह अंतर्ज्ञान, विवेक, आत्मचिंतन और ब्रह्मज्ञान का केंद्र होता है।
🔹 जब कोई व्यक्ति श्रद्धा से तिलक लगाता है, तो वह न केवल अपने शरीर को धार्मिक चिन्ह से सजाता है, बल्कि अपनी आंतरिक चेतना को भी स्पर्श करता है।
🔹 इस स्थान पर तिलक लगाने से मानसिक एकाग्रता बढ़ती है, तनाव कम होता है और आत्मबल में वृद्धि होती है।
🔹 तिलक लगाने वाले पदार्थ — जैसे चंदन, कुमकुम, भस्म, रोली या सिंदूर — सभी शीतलता और ऊर्जा को स्थिर करने वाले होते हैं। ये शरीर की ऊर्जा को नियंत्रित करते हैं और नकारात्मक प्रभावों से रक्षा करते हैं।
🔹 आयुर्वेद के अनुसार यह स्थान अत्यंत संवेदनशील होता है। यहां तिलक लगाने से *पीनियल ग्रंथि* (Pineal gland) सक्रिय होती है, जो मेलाटोनिन हार्मोन का निर्माण करती है — जो मन को शांत और ध्यान की स्थिति में पहुंचाने में सहायक होता है।
🔹 इसे 'आज्ञा' चक्र इसलिए कहते हैं क्योंकि यहीं से हम गुरु, शास्त्र और ईश्वर की आज्ञा को ग्रहण करते हैं और विवेकपूर्वक उस पर अमल करते हैं।
🌼 इसीलिए तिलक केवल शरीर पर लगाया जाने वाला एक रंग नहीं, बल्कि आत्मा को जाग्रत करने की एक विधि है।
🌿 यह हमारी संस्कृति, साधना और विज्ञान — तीनों का अद्भुत संगम है।
*🌺 जब अगली बार तिलक लगाएं, तो केवल रीति के रूप में नहीं — बल्कि आत्मज्ञान और ऊर्जा जागरण की भावना के साथ लगाएं। यही सच्ची परंपरा है।*
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