दीदी तू मां जैसी है"*

*"दीदी तू मां जैसी है"* 

तेरी गोद में ही तो मैंने बचपन पाया,
तेरे आंचल की छांव में ही तो चैन आया।
मां काम में लगी होती थी जब,
तो तू ही थी — जिसने मुझे उंगली पकड़ना सिखाया।

तेरे कंधे पर बैठकर दुनिया को नापा,
तेरे हाथ से ही पहला निवाला खाया।
तूने मेरे हिस्से की भी चीज़ें छोड़ीं,
और मेरे ख्वाबों में अपने रंग पिरो दिए।

तू मां जैसी डांटती भी थी,
फिर रात को आकर प्यार से सुलाती भी थी।
तेरी लोरी की आवाज़ आज भी कानों में गूंजती है,
तेरे बिना तो जैसे ज़िंदगी अधूरी सी लगती है।

जब डरता था अंधेरे में,
तो तेरी हथेली मेरा उजाला बन जाती थी।
और जब रोता था बिन बात के,
तेरा “चुप हो जा ना” — सबसे प्यारी आवाज़ बन जाती थी।

मुझमें जो थोड़ा बहुत आत्मविश्वास है,
वो तेरे "तू कर सकता है!" से आया है।
जब सबने मुझ पर शक किया,
तू ही थी — जिसने खुद पर नहीं मुझ पर भरोसा जताया।

कभी रक्षाबंधन पे नहीं मांगा मैंने कुछ,
क्योंकि तेरा साथ ही तो सबसे बड़ा वरदान है।
दीदी, तू अगर साथ है,
तो क्या ग़म, क्या तूफान है!

तेरी शादी की वो विदाई आज भी याद है,
तेरे पीछे भागता मेरा दिल बेहाल था।
तू कहती रही — "छोटू, अब तुझे बड़ा बनना है,"
पर दीदी, तेरे जाने से मेरी सारी हंसी भी साथ चली गई थी।

अब भी जब थकता हूं या टूटता हूं,
तो फोन उठा के तुझसे बात कर लेता हूं।
तेरी आवाज़ में आज भी वही ममता है,
तेरी हंसी में आज भी वही सुकून बसता है।

तू मेरी मां भी है, बहन भी है,
कभी-कभी बेस्ट फ्रेंड भी है, और गुरू भी है।
छोटा हूं, पर इतना समझ गया हूं,
कि इस दुनिया में तुझ जैसा कोई नहीं, ये जान गया हूं।

अगर दोबारा जन्म मिला,
तो फिर से तेरी गोद में आना है।
फिर से तेरी ऊंगली पकड़कर चलना है,
फिर से तुझसे “दुनिया क्या होती है” वो समझना है।

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