झाकर सैम मंदिर 🙏🙏🏵️🏵️

।। झाकर सैम और चिटगल मंदिर।।


  • श्रद्धा व भक्ति का केन्द्र है झाकर व चिटगल का सैम । शिव व शाक्ति की स्थली उत्तराखण्ड में देवालयों व शक्तिपाठों का अम्बार है धार्मिक आस्थाओं को रेखांकित करते ये मन्दिर सदियों से श्रद्धा की देहरी के रूप में पूज्यनीय रहे हैं। ऐसा ही एक पूजित पावन स्थल है झांकर का सैम मन्दिर। यहाँ सैम को शिव के अंशावतार के रूप में पूजा जाता है। झांकर के अलावा चिटगल गाँव में भी प्राचीन सैम मंन्दिर है दोनों ही स्थानों पर सैम स्वंयभू लिंग के रुप में प्रकट हुए है और भी अनेक स्थानों पर सैम ईष्ट देव के रूप में पूजित हैं और ये देवताओं के मामा कहे जाते हैं। कल्याण करना ही इनका धर्म है। कुछ भक्तजन इन्हें स्वयंभू शिव के नाम से पुकारते हैं
देवभूमि उत्तराखण्ड की आध्यामिक छटा भारतीय संस्कृति की पावनता व निर्मलता का प्रमुख केन्द्र है। हिमालय की गोद में बसा उत्तराखण्ड प्रकृति की अमूल्य धरोहर है। इस भूमि की सुन्दरता का महत्व जितना विशाल है उससे ज्यादा कहीं आध्यामिकता की अनन्त विशालता का महत्व है। यही कारण है। कि शिव व शक्ति की इस क्रीड़ा स्थली में कदम कदम पर धार्मिक गाथाओं को जोड़े अनेक शक्ति स्थल हैं इन्ही देवालयों में एक प्रमुख स्थल है ‘‘झांकर का सैम मंदिर’’।
उत्तराखण्ड में सैम देवता के अनेकों मंदिर है। यंहा की देव गाथाओं व श्रद्धा की भावनाओं सैम देवता सर्वोपरि देवता हैं। अनेक स्थानों पर ये स्वयभू देवता के रुप में प्रकट हुए है। इनकी स्तुति परम फलदायी मानी जाती है। झांकर में स्थित सैम भी स्वयभू देवता के रुप में पूजित हैं। कहा जाता है कि इस देव दरबार में जो भी भक्तजन सच्चे मन से अराधना के श्रद्धा पुष्प अर्पित करता है व कल्याण का भागी बनता है। इसी कारण पवित्र पहाड़ो की गोद में स्थित जनपद अल्मोड़ा के झांकर सैम का अपना एक आलौकिक व दिव्य महत्व है। उत्तराखण्ड के इतिहास में इस देवता को सभी देवताओं का मामा व बाबा भोलेनाथ अर्थात् भगवान शिव का साक्षात् अंशावतार माना जाता है। मन को निर्मल गति प्रदान करने व अपने भक्तों को पूर्ण न्याय प्रदान करना इस देवता की नियति मानी जाती है।जनपद अल्मोड़ा मुख्यालय से 38 किमी० की दूरी पर स्थित सैम का यह दरबार विकास खण्ड धौलादेवी के अर्न्तगत आता है। वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहता हैं। बांज-बुराश व देवदार के घने वृक्षों के मध्य स्थित होने के कारण बरबस ही लोग यहां खिंचे चले आते हैं। इस स्थान पर भगवान शिव ने सैम के अंशावतार के रूप में कब अपनी लीला प्रारम्भ की इस बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नही मिलता है। लेकिन जनश्रुति में ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव जागेश्वर में परम ज्योर्तिलिंग के रुप में प्रकट हुए उसी दौरान उन्होंने यहां भी सैम के रूप में अशंवतार लिया। इस अवतार का प्रयोजन भी लोक कल्याण ही था। एक अन्य कथा के अनुसार कहा जाता हैं। कि आठवीं सदी के आसपास जब जागेश्वर धाम में मन्दिर निर्माण का कार्य चल रहा था तो मन्दिर निर्माण में अचानक अवरोध आने लगा और वे बनते ही धराशायी होने लगे वषों तक यह क्रम चलते रहा आखिरकार ब्राह्मण ज्योतिषियों व योगियों की सभा बैठी। विभिन्न उपायों से इस बात का पता चला कि जागेश्वर की दक्षिण दिशा से आने वाले शिवगण ही यह उत्पात इसलिए मचाते हैं कि वे सनातन शिव को बसुधंरा में खुले आकाश के नीचे देखना चाहते थे। बाद में अलौकिक उपाय के जरिये शिव महिमा से भक्तजनों की इच्छानुसार व गणों को शान्त करने के लिए शिव सैम रूप में यहां स्वयंभू लिंग के रूप में अवतरित हुए और गणों की शान्ति के लिए पास में ही क्षेत्रपाल ने भी डेरा डाला जहां पर बलि प्रथा शुरू हुई किन्तु परम सात्विक दरबार होने के कारण सैम देव को बलि नही दी जाती है,इस मंदिर में पूजा अर्चना कार्य सदियों से पांडे व भट्ट उपजाति के लोग कर रहे हैं। 
 झांकर के सैम देवता के बारे में अनेकों कथाऐं हैं। समय समय पर इनकी अद्भुत लीलाओं से अनेक कथाओं ने जन्म लिया जिनमें से एक कथा इस प्रकार हैं।कहा जाता है कि आसपास के गाँव में नीरा जैत नाम की एक महिला थी जो काफी दुःखी की व्याकुलता से वह झकझोर हो उठी और हाथ में पकड़ी दराती से उद्वेलित होकर भूमि पर चोट मारने लगी तभी भूमि में अचानक खून से लथपथ एक पिण्डी प्रकट हुई। खून की धारा देखकर वो घबरा उठी। तभी लिंग से आवाज आई घबराओ नहीं, पास गांव में जाकर नौनी (मक्खन) लेकर आओ तथा इसका लेपन करो। तभी खून बन्द होगा और तभी तुम्हारा भी कल्याण होगा। मंदिर पर स्थित पिण्डी पर आज भी यह निशान है।
एक अन्य प्रचलित कथन के अनुसार दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विध्वंस करने के बाद सती के आत्मदाह से दुःखी यज्ञ की भस्म को सारे शरीर पर मल कर शिव ने यहीं के घनघोर जंगलों में हजारों वर्षों तक तपस्या की, जिस कारण भी आध्यात्मिक दृष्टि से यह मंदिर क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है।सांसारिक झंझटों से निराश व अन्याय से पीड़ित लोगों के लिए झांकर सैम का दरबार वरदान स्वरुप कहा गया है। पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थान काफी मनमोहक व महत्वपूर्ण है आस-पास के गांवों के श्रद्धालु व भक्तजनों का प्रातःकाल से ही मंदिर में तांता लगना शुरू हो जाता है। परंपरा के अनुसार सर्वप्रथम ‘‘सैम ज्यू’’ को भोग लगा कर प्रसाद वितरित किया जाता है। इस दरबार में अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित रहती है। जिसके दर्शन मात्र से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है, ऐसा विश्वास किया जाता है। कल्याण करना ही सैम देवता का कार्य है। सैम के स्वयंभू लिंग अनेक स्थानों में मौजूद हैं जिनमें झांकर सैम के अलावा धौलादेवी, विकास खण्ड में ही तलचौना गांव से आगे 4 किमी0 बियाबान जंगल में भी सैम देवता का फुट लिंग है जिसके दर्शन को भी लोग यहां आते हैं। यहां पर मांगी गयी मनौती फलदायी होती है। इसके अलावा जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील के अन्तर्गत चिटगल गांव में भी सैम देवता का प्राचीन मंदिर है। यहां पर भी सैम देवता पिण्डी के रूप विराजमान हैं। उत्तराखण्ड की धरती में सैम का सभी देवताओं के साथ मामा का रिश्ता है, अनेक स्थानों में स्थित सैम के पिण्डी झांकर सैम का ही स्वरूप माना जाता है।
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